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सावनी हरियाली....

गीत(16/14)
सावनी हरियाली....
.देख सावनी हरियाली को,
याद पिया की आती है।
चमक-दमक कर मुई दामनी,
तन में आग लगाती है।।

मस्त पवन पुरुवा जब बहता,
तन लेता अँगड़ाई है।
मन को विरह-वेदना साले,
तड़पन गले लगाई है।
गरज बादलों की अंबर से,
रह-रह बहुत सताती है।।
     तन में आग लगाती है।।

नर्तन करता लख मयूर को,
होती मुदित मयूरी है।
पा पानी प्यासी धरती की,
होती इच्छा पूरी है।
पर,सावन की घटा सलोनी,
मुझको तो झुलसाती है।।
     तन में आग लगाती है।।

गा कजरी झूले पे सखियाँ,
हँसी-ठिठोली करती हैं।
भीग-भीग कर वर्षा-जल में,
मुझसे ऐसा कहती हैं।
निर्मोही तेरे साजन को,
याद नहीं तड़पाती है।।
      तन में आग लगाती है।।

आ जाओ हे प्रियतम मेरे,
आकर लाज बचा लो अब।
गृद्ध-दृष्टि लोगों की पड़ती,
आकर उसे भगा दो अब।
समझ उलट रहती लोगों की,
केवल दोष गिनाती है।।
     तन में आग लगाती है।।
             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

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3 Comments

Radhika

10-Feb-2023 04:37 PM

Nice

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Gunjan Kamal

09-Feb-2023 07:31 PM

👌👌👌

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Satvinder Singh

09-Feb-2023 04:25 PM

उम्दा प्रस्तुति आदरणीय

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